#Hanumanjee आज का दिन- 24 अगस्त 2024, हनुमानजी के भक्तों को कभी परेशान नहीं करते हैं- शनिदेव!
#Hanumanjee आज का दिन- 24 अगस्त 2024, हनुमानजी के भक्तों को कभी परेशान नहीं करते हैं- शनिदेव!
* शनि की तीन स्थितियां है- कारक, अकारक और सम!
* जीवन में शनि अकारक है तो सहकर्मियों का सहयोग नहीं मिलता है, घर क्षतिग्रस्त हो जाता है, शुभ कार्य धीमी गति से होते हैं, शरीर के विविध अंगों के बाल झड़ने लगते हैं आदि.
* अकारक शनि होने पर शनि से संबंधित वस्तुओं... लोहा, काली उड़द, कोयला, तिल, जौ, काले वस्त्र, चमड़ा, काला सरसों आदि का यथाशक्ति दान करना चाहिए.
* शनिदेव, राम भक्त हनुमान के भक्तों को कभी परेशान नहीं करते हैं इसलिए शनि द्वारा प्रदत्त परेशानियों से राहत के लिए नियमित रूप से महावीर हनुमान की पूजा-अर्चना करें!
श्रीहनुमान चालीसा गोस्वामी तुलसीदास ने अवधी भाषा में लिखी, जिसमें 40 छन्द हैं, नियमितरूप से श्रीहनुमान चालीसा का पाठ करें....
।। श्रीहनुमान चालीसा ।।
॥ दोहा ॥
श्री गुरु चरन सरोज रज,निज मनु मुकुर सुधारि।
बरनउं रघुबर विमल जसु,जो दायकु फल चारि॥
भावार्थ- श्री गुरु महाराज के चरण कमलों की धूलि से अपने मन रुपी दर्पण को पवित्र करके श्री रघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाले हैं।
बुद्धिहीन तनु जानिकै,सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं,हरहु कलेश विकार॥
भावार्थ- हे पवन कुमार! मैं आपका सुमिरन करता हूँ। आप तो जानते ही हैं, कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल, सद्बुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुःखों व दोषों का नाश कर दीजिए।
॥ चौपाई ॥
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर।जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
भावार्थ- श्री हनुमान जी! आपकी जय हो। आपका ज्ञान और गुण अथाह है। हे कपीश्वर! आपकी जय हो! तीनों लोकों, स्वर्ग लोक, भूलोक और पाताल लोक में आपकी कीर्ति हैं।
राम दूत अतुलित बल धामा।अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
भावार्थ- हे पवनसुत अञ्जनी नन्दन! आपके समान दूसरा बलवान नहीं है।
महावीर विक्रम बजरंगी।कुमति निवार सुमति के संगी॥
भावार्थ- हे महावीर बजरंग बली! आप विशेष पराक्रम वाले हैं। आप खराब बुद्धि को दूर करते हैं, और अच्छी बुद्धि वालो के साथी और सहायक है।
कंचन बरन बिराज सुवेसा।कानन कुण्डल कुंचित केसा॥
भावार्थ- आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।
हाथ वज्र औ ध्वजा बिराजै।काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
भावार्थ- आपके हाथ मे बज्र और ध्वजा हैं और कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।
शंकर सुवन केसरीनन्दन।तेज प्रताप महा जग वन्दन॥
भावार्थ- हे शंकर के अवतार! हे केसरी नन्दन! आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर मे वन्दना होती है।
विद्यावान गुणी अति चातुर।राम काज करिबे को आतुर॥
भावार्थ- आप प्रकाण्ड विद्या निधान है, गुणवान और अत्यन्त कार्य कुशल होकर श्री राम काज करने के लिए आतुर रहते है।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।राम लखन सीता मन बसिया॥
भावार्थ- आप श्री राम चरित सुनने मे आनन्द रस लेते हैं। श्री राम, सीता और लखन आपके हृदय मे बसे रहते हैं।
सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा।विकट रुप धरि लंक जरावा॥
भावार्थ- आपने अपना बहुत छोटा रुप धारण करके सीता जी को दिखलाया और भयंकर रूप करके लंका को जलाया।
भीम रुप धरि असुर संहारे।रामचन्द्र के काज संवारे॥
भावार्थ- आपने विकराल रुप धारण करके राक्षसों को मारा और श्री रामचन्द्र जी के उदेश्यों को सफल कराया।
लाय सजीवन लखन जियाये।श्रीरघुवीर हरषि उर लाये॥
भावार्थ- आपने सञ्जीवनी बुटी लाकर लक्ष्मणजी के प्राण बचाए जिससे श्री रघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
भावार्थ- श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा की तुम मेरे भरत जैसे प्यारे भाई हो।
सहस बदन तुम्हरो यश गावैं।अस कहि श्री पति कंठ लगावैं॥
भावार्थ- श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय हैं।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।नारद सारद सहित अहीसा॥
भावार्थ- श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी, सरस्वती जी, शेषनाग जी सब आपका गुणगान करते हैं।
जम कुबेर दिकपाल जहां ते।कवि कोबिद कहि सके कहां ते॥
भावार्थ- यमराज, कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पण्डित या कोई भी आपके यश का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।राम मिलाय राज पद दीन्हा॥
भावार्थ- आपने सुग्रीव जी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया, जिसके कारण वे राजा बनें।
तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना।लंकेश्वर भये सब जग जाना॥
भावार्थ- आपके उपदेश का विभिषण जी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बनें, इसको सब संसार जानता हैं।
जुग सहस्त्र योजन पर भानू ।लील्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥
भावार्थ- जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है कि उस पर पहुँचने के लिए हजार युग लगे। दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझ कर निगल लिया।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।जलधि लांघि गए अचरज नाहीं॥
भावार्थ- आपने श्री रामचन्द्र जी की अंगूठी मुँह मे रखकर समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।
दुर्गम काज जगत के जेते।सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
भावार्थ- संसार मे जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से सहज हो जाते हैं।
राम दुआरे तुम रखवारे।होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
भावार्थ- श्री रामचन्द्र जी के द्वार के आप रखवाले हैं, जिसमें आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नहीं मिलता अर्थात् आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ हैं।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।तुम रक्षक काहू को डरना॥
भावार्थ- जो भी आपकी शरण में आते हैं, उन सभी को आनन्द प्राप्त होता हैं, और जब आप रक्षक हैं, तो फिर किसी का डर नहीं रहता।
आपन तेज सम्हारो आपै।तीनों लोक हांक तें कांपै॥
भावार्थ- आपके सिवाय आपके वेग को कोई नहीं रोक सकता, आपकी गर्जना से तीनों लोक काँप जाते हैं।
भूत पिशाच निकट नहिं आवै।महावीर जब नाम सुनावै॥
भावार्थ- जहाँ महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है, वहाँ भूत, पिशाच पास भी नहीं भटक सकतें।
नासै रोग हरै सब पीरा।जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
भावार्थ- वीर हनुमान जी! आपका निरन्तर जप करने से सब रोग चले जाते हैं, और सब पीड़ा मिट जाती हैं।
संकट ते हनुमान छुड़ावै।मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥
भावार्थ- हे हनुमान जी! विचार करने में, कर्म करने में और बोलने में, जिनका ध्यान आप में रहता हैं, उनको सब संकटों से आप छुड़ाते हैं।
सब पर राम तपस्वी राजा।तिन के काज सकल तुम साजा॥
भावार्थ- तपस्वी राजा श्री रामचन्द्र जी सबसे श्रेष्ठ है, उनके सब कार्यो को आपने सहज में कर दिया।
और मनोरथ जो कोई लावै।सोइ अमित जीवन फ़ल पावै॥
भावार्थ- जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करें तो उसे ऐसा फल मिलता हैं जिसकी जीवन में कोई सीमा नहीं होती।
चारों जुग परताप तुम्हारा।है परसिद्ध जगत उजियारा॥
भावार्थ- चारो युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग में आपका यश फैला हुआ है, जगत में आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान हैं।
साधु सन्त के तुम रखवारे।असुर निकन्दन राम दुलारे॥
भावार्थ- हे श्री राम के दुलारे! आप सज्जनों की रक्षा करते हैं और दुष्टों का नाश करते हैं।
अष्ट सिद्धि नवनिधि के दाता।अस बर दीन जानकी माता॥
भावार्थ- आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ हैं, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियाँ (अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्रा
राम रसायन तुम्हरे पासा।सदा रहो रघुपति के दासा॥
भावार्थ- आप निरन्तर श्री रघुनाथ जी की शरण में रहते हैं, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।
तुम्हरे भजन राम को पावै।जनम जनम के दुख बिसरावै॥
भावार्थ- आपका भजन करने से श्री राम जी प्राप्त होते हैं, और जन्म जन्मान्तर के दुःख दूर होते हैं।
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥
भावार्थ- अन्त समय श्री रघुनाथ जी के धाम को जाते हैं और यदि फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्री राम भक्त कहलायेंगे।
और देवता चित्त न धरई।हनुमत सेई सर्व सुख करई॥
भावार्थ- हे हनुमान जी! आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते हैं, फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नहीं रहती।
संकट कटै मिटै सब पीरा।जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
भावार्थ- हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते हैं और सब पीड़ा मिट जाती हैं।
जय जय जय हनुमान गोसाई।कृपा करहु गुरुदेव की नाई॥
भावार्थ- हे स्वामी हनुमान जी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो! आप मुझ पर कृपालु श्री गुरु जी के समान कृपा कीजिए।
जो शत बार पाठ कर सोई।छूटहिं बंदि महा सुख होई॥
भावार्थ- जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छुट जायेगा और उसे परम आनन्द मिलेगा।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
भावार्थ- जो भी व्यक्ति हनुमान चालीसा का पाठ करेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी। भगवान शंकर ने यह लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।
तुलसीदास सदा हरि चेरा।कीजै नाथ ह्रदय महँ डेरा॥
भावार्थ- हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्री राम का दास है। इसलिए आप उसके हृदय मे निवास कीजिए।
॥ दोहा ॥
पवनतनय संकट हरन,मंगल मूरति रुप।
राम लखन सीता सहित,ह्रदय बसहु सुर भूप॥
भावार्थ- हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनन्द मंगलो के स्वरुप है। हे देवराज! आप श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय मे निवास कीजिए।
#Saturday श्री त्रिपुरा सुंदरी धर्म-कर्म पंचांग-चौघड़िया : 24 अगस्त 2024
* शक संवत 1946, विक्रम संवत 2081
* अमांत महीना श्रावण, पूर्णिमांत महीना भाद्रपद
* वार शनिवार, पक्ष कृष्ण, तिथि पंचमी - 07:51 तक, क्षय तिथि षष्ठी - 05:30, (25 अगस्त 2024) तक, नक्षत्र अश्विनी - 18:06 तक, योग वृद्धि - 03:07, (25 अगस्त 2024) तक, करण तैतिल - 07:51 तक, द्वितीय करण गर - 18:37 तक, क्षय करण वणिज - 05:30, (25 अगस्त 2024) तक
* सूर्य राशि सिंह, चन्द्र राशि मेष
* राहुकाल 09:23 से 10:59
* अभिजीत मुहूर्त 12:09 से 13:00
काल - 06:11 से 07:47
शुभ - 07:47 से 09:23
रोग - 09:23 से 10:59
उद्वेग - 10:59 से 12:34
चर - 12:34 से 14:10
लाभ - 14:10 से 15:46
अमृत - 15:46 से 17:21
काल - 17:21 से 18:57
* रात्रि का चौघड़िया
उद्वेग - 20:22 से 21:46
शुभ - 21:46 से 23:10
अमृत - 23:10 से 00:34
चर - 00:34 से 01:59
रोग - 01:59 से 03:23
काल - 03:23 से 04:47
लाभ - 04:47 से 06:12
* रात का चौघडिय़ा- अपने शहर में सूर्यास्त से अगले दिन सूर्योदय के बीच के समय को बराबर आठ भागों में बांट लें और हर भाग का चौघडिय़ा देखें.
* अमृत, शुभ, लाभ और चर, इन चार चौघडिय़ाओं को अच्छा माना जाता है और शेष तीन चौघडिय़ाओं- रोग, काल और उद्वेग, को उपयुक्त नहीं माना जाता है.
* यहां दी जा रही जानकारियां संदर्भ हेतु हैं, स्थानीय समय, परंपराओं और धर्मगुरु-ज्योतिर्विद् के निर्देशानुसार इनका उपयोग कर सकते हैं, क्योंकि यहां दिया जा रहा समय अलग-अलग शहरों में स्थानीय समय के सापेक्ष थोड़ा अलग हो सकता है.
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